Stages of computer development in Hindi | Computer Notes in Hindi | RSCIT Exam Notes in Hindi | Generation of Computer in Hindi
कंप्यूटर विकास के इतिहास को अक्सर ही कंप्यूटरीकरण के विविध यंत्रों की अलग पीढ़ियों से जोड़ कर देखा जाता है। कंप्यूटर की हरेक पीढ़ी एक अहम् तकनीकी विकास को दिखाता है जिसने आधारभूत तौर पर कंप्यूटर के काम करने के तरीके को बदल दिया। इससे और भी छोटे, सस्ते, अधिक शक्तिशाली और अधिक प्रभावी व भरोसेमंद उपकरण लगातार बनने लगे। यहाँ कंप्यूटर के विकास के विभिन्न चरणों की जानकारी दी जा रही है जिसके कारण आज मौजूदा उपकरण बने और जिनका हम इस्तेमाल कर रहे हैं।
प्रथम पीढ़ी (1940-1956) : वैक्यूम ट्यूब्स
कंप्यूटर के पहले दौर में स्मृति/मेमोरी के लिए चुंबकीय (मैग्नेटिक) और परिपथीय (सर्क्यूटरी) ड्रम का इस्तेमाल करते थे और इसी वजह से ये काफी बड़े होते थे और पूरे कमरे की जगह लेते थे। यह इस्तेमाल में काफी महंगे होते थे और काफी अधिक बिजली ग्रहण करते, बेहद गर्मी पैदा करते और कई बार इसी वजह से खराब भी हो जाते थे।
पहली पीढ़ी के कंप्यूटर, परिचालन के लिए मुख्यतः मशीनी भाषा पर निर्भर होते थे और एक समय में एक ही समस्या का हल कर सकते थे। इनका इनपुट पंच्डकार्डों (Punch Cards) और पेपरटेप (Paper Tape) पर आधारित था जबकि आउटपुट केवल प्रिंटआउट पर ही दिखते थे।
यूनीवैक (यूनिवर्सल ऑटोमैटिक कंप्यूटर) और इ.एन.आई.ए.सी (इलेक्ट्रॉनिक न्यूमैरिकल इंटीग्रेटर एंड कंप्यूटर) पहली पीढ़ी के कंप्यूटर उपकरणों के उदाहरण हैं। यूनीवैक पहला व्यावसायिक कंप्यूटर था जिसे 1951 में संयुक्त राज्य अमेरिका के जनगणना ब्यूरो को दिया गया था।
दूसरी पीढ़ी (1956-1963) : ट्रांजिस्टर
वैक्यूम ट्यूब के स्थान पर ट्रांजिस्टर का प्रयोग शुरू हुआ और इसी के साथ दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर अस्तित्व में आये। ट्रांजिस्टर की खोज 1947 में ही हो गई थी पर इसका व्यापक इस्तेमाल 1950 के दशक के अंतिम दौर में ही हो सका था।
यह वैक्यूम ट्यूब से काफी परिष्कृत था जिसने कंप्यूटर को छोटा, तेज, सस्ता, ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल और पहली पीढ़ी के कंप्यूटर के मुकाबले अधिक भरोसेमंद बनाया। हालांकि ट्रांजिस्टर भी काफी गर्मी पैदा करते थे जिससे कंप्यूटर को नुकसान पहुँचता था, पर यह वैक्यूम ट्यूब के मुकाबले काफी बेहतर था। दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर भी इनपुट के लिए पंच कार्ड और आउटपुट के लिए प्रिंटआउट पर निर्भर थे।
दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर क्रिप्टिक बाइनरी मशीनी भाषा के मुकाबले सिंबॉलिक या एसेंबली लैंग्वेज का इस्तेमाल करते थे। इससे प्रोग्रामर को वर्ड्स में खास निर्देश देने में सुविधा होती थी। ऊँचे स्तर के प्रोग्रामिंग भाषा भी इसी समय खोजे गये, जैसे कोबोल (COBOL) और फॉरट्रेन (FORTRAN) की भी खोज हुई।
ये वैसे पहले कंप्यूटर भी थे, जो अपनी स्मृति (मेमोरी) में अपने निर्देशों को संग्रहित रखते थे, जिससे मैग्नेटिक ड्रम्स की जगह मैग्नेटिक कोर तकनीक का इस्तेमाल शुरू हुआ। इस पीढ़ी के पहले कंप्यूटर परमाणु ऊर्जा उद्योग के लिए विकसित किये गये थे।
तीसरी पीढ़ी (1964-1971) : एकीकृत परिपथ (इंटीग्रेटेड सर्किट)
तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटरों की सबसे बड़ी विशेषता एकीकृत परिपथ के इस्तेमाल की थी। ट्रांजिस्टर को छोटा कर सिलिकॉन चिप पर लगाया गया, जिसे सेमी कंडक्टर कहते थे। इसने असाधारण रूप से कंप्यूटर की क्षमता और गति में बढ़ोत्तरी कर दी।
पंच कार्ड और प्रिंटआउट की जगह उपयोगकर्ताओं को तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर में मॉनिटर और की-बोर्ड से परिचित कराया गया। साथ ही, एक ऑपरेटिंग सिस्टम से भी वह मुखातिब हुए। इससे एक ही समय एक केन्द्रीय कार्यक्रम (सेंट्रल प्रोग्राम) के साथ कई सारे अलग-अलग अनुप्रयोग (एप्लिकेशन) लायक उपकरण बन सके। पहली बार कंप्यूटर एक बड़े वर्ग तक पहुँच सका क्योंकि वह पहले के मुकाबले अधिक छोटे और सस्ते थे।
चौथी पीढ़ी (1971 से अब तक) : माइक्रो प्रॉसेसर
माइक्रो प्रॉसेसर के साथ ही चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर अस्तित्व में आये, जिसमें हजारों एकीकृत परिपथों (इंटीग्रेटेड सर्किट) को एक सिलिकॉन चिप में बनाया गया। जहाँ पहली पीढ़ी के कंप्यूटर पूरे कमरे की जगह लेते थे, अब कंप्यूटर हथेली में समा सकते थे। 1971 ई. में खोजे गये इंटेल 4004 चिप में कंप्यूटर के सभी जरूरी घटक (कंपोनेन्ट्स) थे- सेंट्रल प्रॉसेसिंग यूनिट(Central Processing Unit) और मेमोरी(memory) से लेकर इनपुट, आउटपुट कंट्रोल तक-सिर्फ एक चिप पर।
1981 में आई.बी.एम अपना पहला कंप्यूटर लेकर आई। यह घरेलू उपयोग करने वालों के लिए था। 1984 में एप्पल ने मैकिनटोस बनाया। माइक्रो प्रॉसेसर, डेस्कटॉप कंप्यूटर से आगे बढ़कर जीवन के कई क्षेत्रों में आया और दिन-प्रतिदिन के उत्पादों में माइक्रो प्रॉसेसर का इस्तेमाल होने लगा।
ये छोटे कंप्यूटर काफी ताकतवर होते हैं। वे आज एक-साथ नेटवर्क को जोड़ सकते हैं जो अंततः इंटरनेट के विकास में काम आए। चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर ने माउस, जीयूआई और हाथ से पकड़े जाने वाले उपकरणों का भी विकास किया।
पाँचवी पीढ़ी (वर्तमान और आगे) : कृत्रिम बुद्धि
पाँचवी पीढ़ी के कंप्यूटर उपकरण जो कृत्रिम बुद्धि पर आधारित हैं, अब भी विकास की प्रक्रिया में है, हालांकि कुछ उपकरण जैसे आवाज की पहचान (वॉयस रिकॉगनिशन) आज इस्तेमाल किये जा रहे हैं। सुपर कंडक्टर और पैरेलल प्रॉसेसिंग, कृत्रिम बुद्धि को वास्तविकता में बदलने में सहायता कर रहे हैं।
परिमाण संगणन (क्वांटम कंप्यूटेशन) और मॉलेक्यूलर व नैनोटेक्नॉलॉजी आने वाले वर्षों में कंप्यूटर का चेहरा पूरी तरह बदल देगा। पाँचवी पीढ़ी के कंप्यूटर का लक्ष्य ऐसे उपकरणों का विकास करना है जो प्राकृतिक लैंग्वेज इनपुट से संचालित हो सकते हैं और वह स्व-संगठन (सेल्फ-ऑर्गैनाइजेशन) और सीखने के लायक है।
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